(Jira ki kheti Kaise Kare) जीरे की खेती कैसे करें जानें जीरे की किस्में और खेती का तरीका

Jira ki kheti Kaise Kare: भारतीय खाने में जीरे का प्रयोग खूब किया जाता है। क्योंकि इसका स्वाद और सुगंध बेहतरीन जायका देता है। यदि आपके पास कृषि योग्य भूमि है, तो आप उसी भूमि पर आसानी से एक लाभदायक जीरे की खेती कर सकते हैं। जीरा एक ऐसा मसाला है जिसकी मांग देश के साथ-साथ विदेशों में भी है और इसकी मांग कभी खत्म नहीं होती। इसे आप इसकी खेती कर अधिक लाभ कमा सकते हैं।

इस बिजनेस की खास बात यह है कि आपका सामान हाथों-हाथ बिक जाता है और आपको हमेशा अच्छी कीमत मिलती है। इसलिए यदि आपने जीरा की खेती का व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचा है, तो आपको यह पता लगाना चाहिए कि जीरा की खेती का व्यवसाय कैसे शुरू किया जाए। तो इस लेख पर हम आपको Jira ki kheti Kaise Kare के बारे में जानकारी देंगे। इस लेख को अंतिम तक अवश्य पढ़े।

(Jira ki kheti Kaise Kare) जीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

जीरे की खेती सर्दी के मौसम में की जाती है। इसके पौधे को सामान्य तापमान की जरूरत होती है इसकी खेती के लिए अधिक गर्म जलवायु उपयुक्त नहीं होती है इसके पौधे को सामान्य बारिश की जरूरत होती है । इसके पौधे सर्द जलवायु में वृद्धि करते है

जीरे के पौधे को अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है जीरे के पौधे की रोपाई के बाद 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है ,पौधे की वृद्धि के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है और पौधे की रोपाई के समय 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

जीरे के खेत की तैयारी की चरण दर चरण विधि

जीरे की खेती के लिए सबसे पहले उसके खेत को अच्छे से तैयार कर लिया जाता है फिर खेत की मिट्टी को जुताई करके पलट दिया जाता है। जुताई के बाद खेत को खुल छोड़ दिया जाता है ताकि खेत को अच्छे से धूप मिल सके। उसके बाद खेत में गोबर की खाद भी डालनी चाहिए। ताकि खेत में मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है। उसके बाद खेत की मिट्टी में खाद को अच्छे से मिलाना चाहिए। उसके बाद खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करनी चाहिए।

खेत की जुताई के बाद उसमे पानी से पलेव कर देना चाहिए।इसके बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव करना चाहिए उसके बाद खेत में पाटा लगवाकर खेत को समतल कर देना चाहिए। समतल खेत में जलभराव की समस्या उत्पन नहीं होती है। इसके अलावा खेत में 20 KG यूरिया पौधे के विकास के दौरान डालना चाहिए।

बीज रोपाई करने की विधि

जीरा के बीजों की रोपाई समतल भूमि में छिडकाव और ड्रिल के माध्यम से की जाती है। छिडकाव विधि में इसके बीजों की रोपाई क्यारी बनाकर की जाती है। इसलिए इसके बीजों की रोपाई से पहले खेत में 3 गुना 5 फिट की क्यारी तैयार कर लें। उसके बाद तैयार की गई क्यारियों में किसान भाई बीजों को छिड़क कर उसे हाथ या दंताली से मिट्टी में मिला देते हैं।

जिससे बीज मिट्टी में एक से डेढ़ सेंटीमीटर नीचे चला जाता है। इसके बीजों की जमीन में सिर्फ एक से डेढ़ सेंटीमीटर नीचे ही उगाना चाहिए। इससे ज्यादा नीचे उगाने से अंकुरण प्रभावित होता है। ड्रिल के माध्यम से इसके बीजों की रोपाई पंक्तियों में की जाती है। पंक्तियों में रोपाई के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच लगभग एक फिट की दूरी होनी चाहिए।

और पंक्तियों में इसके बीजों के बीच लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी उपयुक्त होती है। इसके बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए। बीज को उपचारित करने के लिए कार्बनडाजिम की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए। एक हेक्टेयर में ड्रिल के माध्यम से बीज रोपाई के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है।

जबकि छिडकाव विधि से रोपाई के लिए लगभग 12 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है। जीरे की खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है। इस दौरान इसकी खेती के लिए इसके बीजों की रोपाई नवम्बर माह के आखिरी तक कर देनी चाहिए। इससे अधिक देरी से रोपाई करने पर इसका अकुरण और पैदावार दोनों ही प्रभावित होते हैं।

जीरा फसल की सिंचाई करने की प्रक्रिया

बीज बुवाई के तुरंत बाद पहली हल्की सिंचाई की जाती है। इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज हो। अधिक तेज बहाव से बीज क्यारियों के किनारे पर इक्कठ्ठे हो जाते है। जिससे उनका वितरण विगड़ जाता है। दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 8 से 10 दिन करनी चाहिए।

फिर इसके बाद आवश्यकता अनुसार सिंचाई कर सकते है। 2 से 3 सिंचाईयों बाद जीरे की फसल को अधिक सिंचाई आवश्यकता नही पड़ती है। जीरे की फसल में जब 50 प्रतिशत दाने पूरी तौर पर सिंचाई बंद कर देना चाहिए। इस अवस्था में सिंचाई करने से बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।

जीरे की उन्नत किस्मे की विस्तार से जानकारी

जी. सी. 4:- इस किस्म को गुजरती 4 नाम से भी जाना जाता है। यह किस्म 8 किवंटल प्रति हेक्टियरर के हिसाब से पैदावार देती है। पौधे की उचाई सामान्य होती है ,इसके जीरे के दानो का रंग गहरा भूरा होता है साथ ही इसके दाने चमकीले होते है यह किस्म बीज रोपाई के 110 दिनों के बाद पैदावार देती है।

जी.सी. 1:- इस किस्म को गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया था। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 7 किवंटल की पैदावार देती है। इस किस्म के पौधे 110 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार होती है। इसके पौधे में उख्टा रोग नहीं होता है।

आर. जेड. 209:- इस किस्म के पौधे की लम्बाई अधिक होती है । यह किस्म बीज रोपाई के 130 दिनों के बाद कटाई के लिया तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 8 किवंटल की पैदावार देती है। तथा इस किस्म के दाने मोटे होते है। जीरे की इस किस्म में छछियारोग नहीं होता है।

आर. जेड. 19:- यह फसल प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 10 किवंटल की पैदावार देती है। यह किस्म पौध रोपाई के 120 दिनों के बाद फसल तैयार होती है। इसका रंग गहरा भूरा और आकर्षक होता है। जीरे की इस कसिम में झुलसा रोग नहीं होता है।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण करने की प्रक्रिया

जीरे की अच्छी उपज के लिए खरपतवार नियंत्रण एवं भूमि उचित वायु संचार के लिए दो से तीन निराई-गुड़ाई की जरुरत होती है। जीरे की फसल में पहली निराई-गुड़ाई 30 दिन बाद करनी चाहिए। और दूसरी गुड़ाई 60 दिन बाद करनी चाहिए। इससे ज्यादातर खरपतवार नष्ट हो जाते है।

जिससे फसल की अच्छी वृध्दि होती है। खेत में अधिक खरपतवार होने पर खरपतवार नाशी का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए बुवाई के बाद और जमाव से पहले पेंडीमेथालिन खरपतवारनाशी का एक क्रियाशील तत्व का 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर भूमि पर छिड़काव करना चाहिए।

जीरे की खेती की लागत और मुनाफा

आप भारत में उगाई जाने वाली जीरे की किसी भी किस्म का चयन करके एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 7 से 8 क्विंटल जीरे का उत्पादन कर सकते हैं। अन्य जानकारी के मुताबिक एक हेक्टेयर जमीन पर जीरे की खेती करने में करीब 35 से 40 हजार रुपये का खर्च आता है।

खुदरा में जीरे की कीमत 150 रुपये प्रति किलो से अधिक है, अगर आप इसे थोक में 110 या 120 रुपये प्रति किलो बेचते हैं, तो आप प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर 40 से 45 हजार रुपये का मुनाफा कमा पाएंगे।

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